• भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते की डगर कठिन क्यों है?

    भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर तीसरे दौर की बातचीत शुरू हो गई है. 15 साल से दोनों पक्ष यह समझौता करने की कोशिश में हैं. ऐसी क्या दिक्कतें हैं कि इतना वक्त लग गया है?

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    भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते के लिए तीसरे दौर की बातचीत हो रही है. इस हफ्ते नई दिल्ली में शुरू हुई यह बातचीत तीन हफ्ते तक चलेगी और इसमें कृषि उत्पाद, डिजिटल व्यापार, पर्यावरण और बौद्धिक संपदा जैसे मुद्दों पर बात होगी. दोनों पक्षों के बीच जियोग्राफिकल इंडिकेटर (जीआई) और निवेश सुरक्षा समझौते पर भी चर्चा होने की संभावना है.

    इससे पहले दूसरे दौर की बातचीत अक्टूबर में ब्रसेल्स में हुई थी. कई यूरोपीय देश इस समझौते को लेकर उत्सुक हैं जिनमें जर्मनी भी है. भारत में जर्मनी के राजदूत डॉ. फिलिप आकरमान ने भारतीय अखबार फाइनैंशल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि जर्मनी इस समझौते को लेकर बहुत उत्सुक है लेकिन कई जटिल मुद्दों को सुलझाए जाने की जरूरत है.

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    उन्होंने कहा, "जर्मनी बहुत उत्सुक है लेकिन कई मुश्किल सवाल हैं जिनका हल तलाशना है. यूरोपीय संघ ने मानकों के सवालों को उठाया है. भारत और यूरोपीय संघ, दोनों ही बात कर रहे हैं. मैं इस बात की गारंटी तो नहीं दे सकता कि 2023 से पहले यह हो जाएगा.”

    यूरोपीय संघ के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत 2007 से जारी है. तब दोनों पक्षों ने रणनीतिक साझादारी को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. तब से छह साल तक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चलती रही लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाने के चलते आखिर यह समझौता सिरे नहीं चढ़ सका. जिन मुद्दों पर बात अटकी उनमें पेशेवर कामगारों की आवाजाही और गाड़ियों पर टैक्स लगाने की बात भी शामिल थी.

    उसके बाद आठ साल तक यह मुद्दा ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा. 2018 में यूरोपीय संघ ने भारत के लिए अपनी रणनीति की घोषणा की और जुलाई 2020 में ईयू-इंडिया समिट हुई. वहां मुक्त व्यापार समझौता दोबारा एजेंडे में आया और मई 2021 में ईयू और भारत के नेताओं की बैठक हुई जिसमेंसमझौते पर बातचीत दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी.

    यूरोपीय संघ भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अहम मानता है. उसकी वेबसाइट पर भारत के बारे में लिखा है, "भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है और वैश्विक आर्थिक प्रशासन में अहम स्थान रखता है. भारत पहले ही ईयू का एक महत्वपूर्ण निवेश और व्यापार साझीदार है और अपार संभावनाएं रखता है. वह एक विशाल और गतिशील बाजार है जिसके लिए आईएमएफ ने आठ फीसदी की जीडीपी विकास दर का अनुमान जाहिर किया है."

    भारत-ईयू व्यापार

    फिलहाल, यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार-साझीदार है. दोनों के बीच 2021 में 88 अरब यूरो का व्यापार हुआ है जो भारत के कुल व्यापार का 10.8 प्रतिशत है. अमेरिका (11.6 फीसदी) इस मामले में सबसे ऊपर है और चीन (11.4 प्रतिशत) दूसरे नंबर पर है. अमेरिका (18.1 प्रतिशत) के बाद भारत का सबसे ज्यादा निर्यात यूरोपीय संघ (14.9 फीसदी) को ही जाता है.

    इसके उलट यूरोपीय संघ के व्यापारिक साझीदारों में भारत दसवें नंबर पर है और 2021 में ईयू के कुल व्यापार का सिर्फ 2.1 प्रतिशत भारत के साथ हुआ. चीन के साथ सबसे ज्यादा 16.2 प्रतिशत व्यापार हुआ जबकि अमेरिका 14.7 फीसदी पर रहा. इस वजह से यूरोप में भारत को एक बड़ी गुंजाइश के रूप में देखा जाता है. पिछले एक दशक में दोनों दशों के बीच सामानों के व्यापार में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2020 में दोनों पक्षों के बीच सेवाओं का व्यापार 30.4 अरब यूरोप पर पहुंच गया था.

    भारत में विदेशी निवेश के मामले में भी ईयू की हिस्सेदारी बढ़ रही है. 2017 में ईयू का निवेश 63.7 अरब यूरो का था जो 2020 में बढ़कर 87.3 अरब यूरो हो गया. लेकिन चीन (201.2 अरब यूरो) या ब्राजील (263.4 अरब यूरोप) की तुलना में यह काफी कम है.

    भारत में यूरोप की 6,000 कंपनियां काम कर रही हैं जो कुल मिलाकर 17 लाख लोगों को सीधे रोजगार उपलब्ध करवा रही हैं जबकि 50 लाख लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है.

    यूरोपीय संघ कहता है कि भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों में उसका मुख्य उद्देश्य "ठोस, पारदर्शी, खुला, भेदभाव से मुक्त" संबंध स्थापित करना है जहां यूरोपीय कंपनियों को अपने निवेश और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा मिले. ईयू कहता है, "मकसद द्विपक्षीय व्यापार और निवेश की अनछुई संभावनाओं को वास्तविकता बनाना है.”

    क्या हैं चुनौतियां?

    2013 में जब भारत और ईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत खटाई में पड़ गई तो उसकी वजह कुछ बड़े मतभेद थे, जिन्हें सुलझाना अब भी आसान नहीं. यूरोपीय संघ का मानना है कि भारत में व्यापारिक वातावरण बहुत ज्यादा पाबंदियों से भरा है. अपनी वेबसाइट पर उसने लिखा है, "टेक्निकल बैरियर्स टु ट्रेड (टीबीटी), सैनिटरी एंड फाइटो-सैनिटरी मेजर्स (एसपीएस), अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा ना उतरना और भारत का कानूनी या प्रशासनिक तरीकों से भेदभाव करना जैसे मुद्दे कई क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं जिनमें सामान और सेवाओं के अलावा निवेश और सरकारी खरीद भी शामिल हैं.”

    टेक्निकल ट्रेड बैरियर्स (टीबीटी) से अर्थ उन तकनीकी नियम-कानूनों और खुद तय किए गए मानकों से है जिनके आधार पर उत्पादों के रूप और आकार, डिजाइन, लेबलिंग, मार्किंग, पैकेजिंग, फंक्शनैलिटी और परफॉरमेंस आदि तय किया जाता है. एसपीएस में यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपभोक्ताओं को सुरक्षित और उचित उत्पाद मिलेंगे.

    भारत की तरफ से भी कई आपत्तियां हैं जिन्हें यूरोप के लिए मानना मुश्किल हो रहा है. मसलन, भारत चाहता है कि आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स की 15 श्रेणियों को उसके यहां पंजीकृत कराया जाना चाहिए. इसी तरह टेलीकॉम नेटवर्क एलिमेंट्स की अनिवार्य टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन का मुद्दा भी है. भारत यह भी चाहता है कि उसे डेटा-सुरक्षित देश के रूप में मान्यता मिले.

    इन्हीं सब बातों को लेकर आकरमन कहते हैं कि हरेक मुक्त व्यापार समझौता जटिल होता है. उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा, "भारत एक विशाल और आत्मविश्वास से भरा साझीदार है इसलिए मुझे लगता है कि कई दौर की बातचीत होगी. तो क्या हम 2023 तक तैयार हो पाएंगे? मुझे लगता है, नहीं.”

    लचीला हुआ है भारत

    भारत अपने बाजार की सुरक्षा को लेकर काफी सजग रहता है. इसी कारण उसके साथ मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर कई देशों को मुश्किल होती रही है. भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंधों पर काम करने वालीं न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की जनरल मैनेजर और पर्थ यूएसएशिया सेंटर की नॉन रेजिडेंट इंडो-पैसिफिक फेलो नताशा झा-भास्कर कहती हैं कि भारत को संरक्षणवादी देश के रूप में देखा जाता है लेकिन उसकी वजहें भी हैं.

    वह कहती हैं, "इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि कोई भी मुक्त व्यापार समझौता भारत की 60 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है, जो कृषि, दूध, ऑटो और कपड़ा उद्योग में काम करती है. अगर हम भारत के समझौतों वाले देशों को देखें तो 15 में से 13 देशों के साथ भारत व्यापार घाटे में है. यह दिखाता है कि मुक्त व्यापार समझौतों से भारत को उतना फायदा नहीं हुआ है क्योंकि वह उपभोग-आधारित अर्थव्यवस्था है. हर देश अपने हितों को देखकर ही फैसले लेता है.”

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस तरह के समझौतों के लिए ज्यादा उत्सुक दिखाई देती है. इस साल भारत ने दो व्यापार समझौते किए हैं जिनमें से एक ऑस्ट्रेलिया के साथ है जिस पर मार्च में हस्ताक्षर हुएऔर इसी महीने ऑस्ट्रेलिया की संसद से उसे मंजूरी मिली है. इसके अलावा यूएई के साथ व्यापार समझौते पर अगस्त में दस्तखत हुए थे. पिछले साल उसने मॉरिशस के साथ एक व्यापार समझौता किया था. ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत आखरी चरण में है जबकि अमेरिका के साथ भी बातचीत काफी तेजी से आगे बढ़ रही है.

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